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लेकिन किसी अन्य के सिर से समय व सूचना के अभाव में मां बाप का साया न उठे । मैं जल्द ही ऐसा यंत्र इजाद करवाऊंगा । यही मेरी मेरे पिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी । कुछ ऐसे भाव मन में लेकर श्री सुमित भ्याना निकल पड़े ।


“कौन कहता है आसमां में छेद हो नहीं सकता। एक बार मन से पत्थर उछालो तो यारो”


पिताजी के साथ घटित इस घटना से प्रेरित होकर श्री सुमित भ्याना इस आपातकालीन समय में जल्द से जल्द मरीज को डॉक्टर के पास पहुंचाने के उपायों पर दिन-रात चिंतन करने लगे थे । इसी चिंतन मनन में उन्होंने पाया कि लोगों को अपने व्यापार व नौकरी के कारण अपना घर बार छोड़ अन्य शहरों में रहना पड़ रहा है । उनके वृद्ध माता-पिता घर में अकेले ही रह रहे हैं । जिन बूढ़ी हड्डी पसलियों ने उनके पालन - पोषण में अपनी जान खपा दी थी , अब वही बूढ़े माता-पिता बच्चों की व्यावसायिक मजबूरी या नौकरी की बाध्यता के कारण उनके न चाहते हुए भी अकेले हैं । दूर रहने के कारण काफी देर बाद उन्हें पता चलता है कि उनके बूढ़े मां-बाप के साथ पीछे से क्या घटना घटित होती है। मुश्किल की इस घड़ी में वे ज्यादा से ज्यादा क्या कर सकते हैं । कैसे - कैसे वे छटपटाए होंगे । बेचैन करने वाली ऐसी या वैसी किसी भी दुर्घटना पर विचार करते – करते वे खुद भी बेचैन हो गए । इन्हीं बातों को लेकर श्री सुमित भ्याना ने कुछ विशेष करने की ठानी ।


कहते हैं जब हम कोई कार्य सच्चे मन से करते हैं तो स्वयं भगवान भी साथ देते हैं ।


पिता की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि ठीक 10 दिन बाद श्री सुमित भ्याना ने यह ज्ञात कर लिया कि यह घड़ीनुमा यंत्र बन सकता है , जिसके एक बटन दबाने से अपने 4 - 5 सगे - संबंधियों को घर की आपातकालीन स्थिति से अवगत करवाया जा सकता है । पिताजी के चले जाने के ठीक 37 दिन बाद ( 24 /3/ 2019 ) इस अविश्वसनीय यंत्र के दो सेट श्री सुमित भ्याना के हाथ में थे जिन्हें पाकर सुमित भ्याना का न केवल उत्साह व मनोबल सातवें आसमान पर था बल्कि मनोकामना पूरी होती देख मन इस बात को लेकर बड़ा सन्तुष्ट था कि समय व सूचना के आधार पर मैं चाहे अपने पिता को न बचा पाया हो लेकिन इस कारण अब किसी और के सिर से मां बाप का साया नहीं उठने दूंगा ।